¦! दहाड अब मेरे आदिवासी !¦
ऊठ अब मेरे आदिवासी !
कसम तुझे बिरसा ,खाज्या ,तंट्या ,गुलामबाबा और अंबरसिंग महाराज की ,
द्वेष -मत्सर ,भेदभाव की सारी दिवारे तोडकर ,
स्थापना करने हेतु मुलनिवासी राज की |
बढ रहा है अब अत्याचार ,
खत्म अब उसे करना होगा ,
देश के इस सच्चे शेर को ,
मनुवाद को मिटाने हेतू अब दहाडना होगा |
कुंभकर्णिय नींद में सोते सोते ,
पानी सिर से ऊपर बह रहा है ,
अब तो तेरे अस्तित्वपरही सवाल मँढरा रहा है ,
ये सच तुझे क्यों नही समझ में आ रहा है ?
देखा है मैने एक मुर्गी को ,
शेरनी का अवतार लेते हुए ,
अपने लाडले पर पॉव रखने वाले इन्सान पर ,
पुरी जोरों से हमलावर होते हुए |
अचानक हुए इस हमले से ,
भागने लगा वो इन्सान इधर -उधर ,
अगर तु भी दहाडने लगेगा ,तो
कौन अत्याचारी रुकेगा तेरे अगल - बगल ?
जय आदिवासी ¦¦ आम्ही आदिवासी
ता .शहादा जि .नंदुरबार
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